tag:blogger.com,1999:blog-67450114385021409622023-11-15T11:08:25.349-08:00ये सिलसिलामधेपुरा का इतिहास,साहित्य और संस्कृति को जानने का एक साझा मंचyehsilsilahttp://www.blogger.com/profile/13383588622758341061noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-6745011438502140962.post-80428423371752860792009-04-10T00:42:00.001-07:002009-05-04T08:18:28.246-07:00कोसी क्षेत्र की ऐतिहासिक धरोहरों का शोधात्मक अध्ययनकोसी क्षेत्र की ऐतिहासिक धरोहरों का शोधात्मक अध्ययन<br /><br /> ईसा के 623 वर्ष पूर्व बुद्ध का अर्विभाव हुआ था। महापंडित रहुल सांकृत्यायन की ’बुद्धचर्या’ के अनुसार जब बुद्ध इस क्षेत्र मे अपने बारह सौ भिुक्षुओं के साथ पघारे थे, उस समय उनकी आयु 49 वर्ष की थी। तत्कालीन अंगुत्तराप के ’आपण निगम’ (वर्तमान बनगांव, महिषि) के ब्रहमण अपने विद्याानुराग और चातुर्य में अग्रगण्य थे उन्होंने गौतमबुद्ध जैसे ब्राह्मण धर्म विरोघी को अपने भिक्षु संध के सांस्थिक विधान में परिर्वतन संशोधन करने पर विवश किया था। इसकी वृहत चर्चा बौद्ध ग्रंथ ’सुत्त निपात के ’सेल सुत्तंम’ और महा वग्ग’ की ’केणिय कथा’ मे आयी है। इसी निगम के उद्भट विद्वान तीन वेद, निधंटु, कल्प इतिहास, व्याकरण लोकायत शास्त्र, दर्शन शास्त्र आदि में निष्णात तथा तीन सौ छात्रों को विद्यादान देने बाल सेल (शैल) नामक ब्राहमण ने बौद्ध धर्म की प्रवज्या ग्रहण कर ली और उसने संपूर्ण अंगुत्तराप(कोसी अंचल) में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया। <br /> बौद्धों के अंतिम आश्रयदाता पाल राजाओं के अनेक स्मृति चिन्ह यहाँ बिखरे पड़े है। महाभारत कालीन अवशेष अध्ययन की दृष्टि से बड़े ही महत्वपूर्ण हैं । विराटनगर (नेपाल) के निकट भारतीय सीमा में स्थित ’भेड़याही’ गांव जिला अररिया से लेकर सहरसा जिले के विराटपुर तक राजा विराट के स्मृति चिन्ह मिल जाते हैं। इसके अतिरिक्त मुस्लिम शासकों के स्मृति चिन्ह भी मेरे अध्ययन की परिधि मे रहे हैं।<br /> मैंने सभी स्थानों का परिभ्रमण कर इनका ऐतिहासिक सर्वेक्षण किया है।<br /><strong>सिंहेश्वर स्थान</strong> - यह मधेपुरा से आठ किलोमीटर उत्तर में समपूर्ण कोसी अंचल का महान शैव तीर्थ है। यहाँ का शिवलिंग अत्यंत प्रचीन है। वराहपुराण के उत्तर्राद्ध की एक कथा के अनुसार विष्णु ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी। सिंहेश्वर के निकट ही कोसी तट पर सतोखर गांव है , जहाँ ऋष्यशृंग ने ‘द्वादश वर्षीय यज्ञ’ किया था जिसमें गुरुपत्नी अरुनधती के साथ राम की तीन माताएं आई थीं। इस यज्ञ का उल्लेख भवभूति ने ‘उत्त्तर रामचरित’ के प्रथमांक में किया है। इस यज्ञ के सारे साक्ष्य कोसी तीर पर सात कुंडों के रूप में मौजूद हैं । दो कुण्ड कोसी के पेट में समा गये हैं। खुदाई में राख के मोटी परत प्राप्त हुई है जो दीर्धकाल तक होने वाले यज्ञ के साक्ष्य हैं।<br /> सिंधेश्वर स्थान में तीन आर्योत्तर जातियाँ - कुशाण, किरात और निषादों की संस्कृति का पुरा काल में ही विकास हुआ और यह शैव तीर्थ आदि काल से ही उन्हीं के द्वारा पुजित, संरक्षित एवं संरक्षित होता रहा। <br /><strong>कन्दहा का सूर्य मन्दिर</strong>- यह इस क्षेत्र का एकमात्र सूर्य मन्दिर है। यहाँ धेमुरा (धर्ममूला) नदी एक बड़े चैड़़े से आकार कन्दाहा और ‘देवनगोपाल’ गाँव के मध्य होकर बहती है । कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव ने विवेक, बुद्धि तथा अदम्य संकल्प शक्ति का प्रतीक अपने तृतीय नयन से कामदेव का दहन किया था जिसमें सूर्य का तेज था। कन्दाहा में द्वादशादित्यों में प्रसिद्ध ‘भवादित्य’ का प्राचीन सूर्य मन्दिर है। यह कन्दर्प दहन का साक्षी भी है तथा अंग देश के निर्माण का श्रेय भी इसी स्थल को है। कन्दाहा के चारों ओर अनेक शिव मंदिर हैं जिसमें देवनवन महादेव अति विख्यात हैं । इस शिवलिंग को महाभारत के पश्चात वाणासुर ने स्थापित किया था। इसके अतिरिक्त चैनपुर में नीलकंठ महादेव, बनगाँव में भव्य शिव मंदिर महिषी के निकट नकुचेश्वर महादेव तथा मुख्य कोसी के पश्चिम कुश ऋषि द्वारा स्थापित कुशेश्वरनाथ का भव्य मंदिर महतवपूर्ण है ।<br /><br /><strong>महिषी</strong> - धेमुड़ा और त्रियुगा नदी के मध्य अवस्थित महिषी पौराणिक ही नहीं एक ऐतिहासिक स्थल भी है। यह आरम्भ में शिव की लीला - भूमि रही है। वृहत् धर्मपुराण और कालिका पुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति के रौद्र रुप के विध्वंस के बाद सती की दग्ध देह को अपने कन्धे पर लेकर भगवान शिव चारों ओर धूमने लगे। शिव के रौद्र रुप को देखकर महाविनाश की आशंका से विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव को 51 भागों मे काट कर गिरा दिया , कहा जसतस है कि इस स्थान पर सती के नेत्र का तारा गिरने से यह उग्रतारापीठ कहलाया। <br /> स्मरण रहे कि महिषी का उग्रतारा स्थान, धर्मधारा(धमाहरा धाट) का कत्यायनी स्थान और विराटपुर का चण्डी स्थान त्रिकोण पर स्थित है जो तंत्र -साधना के लिए प्रशस्त क्षेत्र माना गया है। अतः बौद्ध धर्म के उद्भव के पूर्व महिषी हिन्दू धर्म का एक सिद्ध पीठ रही रही है । <br /> गुप्त शासन काल से पाल शासन काल तक कितने राजनैतिक उथल-पुथल और परिवर्तन हुए किन्तु महिषी के आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर इसका कोई प्रीााव नहीं पड़ा । महिषी तंत्र साधना का प्रमुख केन्द्र बनी रही । यह तंत्र तिब्बत और चीन से आयातित होकर भारत पहुँचा था। ‘चीनाचारतंत्र’ नामक ग्रन्थ में महिषी का वृतान्त है।<br /> महिषी महायानियों का गढ़ था। यह पिछले हजार वर्षों से तांत्रिक साधना का केन्द्र रहा है । शंकराचार्य और मंडन मिश्र के शास्त्रार्थ की कथा भी इस स्थान से जुड़ी है।<br /><br /><strong>सरसंडी</strong> - उदाकिशुनगंज अनुमंडल के सरसंडी ग्राम में अकबर के काल की एक विशाल मस्जिद मिट्टी के नीचे दबी हुई है। कहा जाता है कि यह गन्धवरिया राजा बैरीसाल का किला था। इसका क्षेत्रफल 400 वर्गफीट है। सम्प्रति मस्जिद का स्थान ईदगाह में बदल गया है। इस ईदगाह से एक-डेढ़ किलोमीटर उत्तर मिट्टी का एक विशाल टीला है जिसका क्षेत्रफल 120 वर्गफीट तथा उँचाई 12 फीट। कहा जाता है कि राजा बैरीसाल का खजाना इसी मिट्टी के टीले में गड़ा हुआ है । सरसंडी से जुड़े सूफी फकीरों के कई<br />किस्से चर्चित हैं।<br /><strong>विराटपुर चण्डीस्थानः</strong>- सोनवर्षा प्रखण्ड स्थित इस गाँव में माँ चण्डी कर भव्य मंदिर है । इस मंदिर का वृतांत महाभारत से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि यह मंदिर राजा विराट के राजमहल के मुख्य द्वार पर था अथवा राजप्रसाद का मुख्य प्रसाद था, एक प्रस्तर स्तम्भ मंदिर के बाहर पड़ा हुआ है। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि इस मंदिर का ग्यारहवीं सदी में राजा कुमदानन्द चन्द्र द्वारापुनर्निमाण कराया गया है। इस मंदिर में बौद्ध युगीन दो प्रतिमाएँ भी है। लोक मान्यता के अनुसार वनवास काल में कुन्ती अपने पाँच पाण्डव पुत्रों के साथ यहाँ निवास करती थी।<br /><br /><strong>श्रीनगर</strong>-कुशानों से रुपान्तरित राजभरों के शासक श्रीदेव के दो विशाल गढ़ के अवशेष इस गाँव में हैं विस्तृत भूखण्ड में फैले इन अवशेषों की ऊँचाई लगभग पन्द्रह फीट है । इसके नीचे लाखौरी ईंट की दीवारें हैं । पुरातत्व विभाग द्वारा इसका उत्खनन होने पर बहुमुल्य सामग्रियाँ मिलने की संभावना है<br /><br /><strong>निशिहरपुर</strong> - मधेपुरा से बारह किलोमीटर पूर्वोत्तर कोण में किरात (बाँतर) राजा निशिहर देव की राजधानी , जहाँ एक ऊँचे टीले पर उनके गढ के अवशेष हैं, गढ पर पड़े उनके स्तंम्भ पूर्व पाल युग के प्रतीत होते हैं।<br /><br /><strong>पंचरासी</strong> - मधेपुरा से साठ किलोमीटर दक्षिण पूर्व कोण पर चैसा प्रखंड में दैवी गाुणों एवं चमत्कारों से समलंकृत लोकदेव बाबा विशुराउत का सिद्ध स्थल है जो भक्तों एवं श्रद्धालुओं का आकर्षण केन्द्र हैं ।<br /><br /><strong>बेलो गढ़</strong>- यह मधेपुरा से दस किलोमीटर पूर्व दक्षिण कोण पर अवस्थित है, यह महायानियों का प्रसिद्ध सिद्ध स्थल रहा है, यहाँ लोकेश्वरी देवी के स्थान पर प्रचीन ईंटों के प्राचीर के अवशेष मिले हैं जो संभवतः पाल युग के हैं । लोकेश्वरी महायानियों की देवी हैं ।<br /><br /><strong>खौपैती</strong> - मधेपूरा से 7 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम स्थित एक गाँव है , यहाँ प्रसिद्ध बाहुबली लोरिक का युद्ध स्थल था- जियके स्मारक के रुप में मिट्टी का एक उंचा टीला अभी भी वर्तमान है।<br /><br /><strong>गोलमा</strong>- मधेपुरा से 12 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम स्थित हैजहाँ 17 वीं शताब्दी में लोकदेव धोधन महाराज और 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में शिवदत्त का जन्म हुआ था।<br /><strong>मुरहो</strong> - मधेपुरा से 10 किलोमीटर पूरब-दक्षिण पर स्थित चर्चित गाँव। यहाँ पौराणिक आस्था एवं बौद्धकालीन सिद्धों का स्थल रहा है। मुरहो गाँव के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी लाल मण्डल, कमलेश्वरी प्रसाद मण्डल, भुवनेश्वरी प्रसाद मण्डल एवं विन्ध्येश्वरी प्रसाद मण्डल थे।<br /><br /><strong>रानीपट्टी</strong>- मधेपुरा से 30 किलोमीटर उत्तर-पूर्व स्थित यह गाँव स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण केन्द्र था। यहाँ 18 अप्रैल 1891 को सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी शिवनन्दन प्र. मण्डल तथा 1 फरवरी 1904 को महान समाजवादी नेता भूपेन्द्र नारायण मण्डल का जन्म हुआ।<br /><br /><strong>शाह आलमनगर</strong> - यह मधेपुरा से साठ किलोमीटर दक्षिण चन्दैल शासको की राजधानी थी । इनके द्वारा निर्मित दुर्ग, तालाब, मंदिर आदि दर्शनीय है।<br /> कोसी क्षेत्र में अनेक ऐतिहासिक महत्व के स्थल विखड़े पड़े हैं जिनका अध्ययन अनिवार्य है इन स्थलों में प्रमुख हैं- नयानगर (उदाकिशुनगंज), हरदीगढ (लोकदेव लोरिक से संबन्धित)़, श्रीपुर मिल्की तथा इस क्षेत्र मे फैले सूफी फकीरां के खानकाह आदि प्रमुख हैं।<br /><br /><br />संदर्भ सूचीः-<br /><br />1. सहरसा जिला गजेटियर 1965<br />2. भागलपुर जिला गजेटियर, 1962<br />3. बिहार लोक संस्कृति कोश (मिथिला खंड) डा. लक्ष्मी प्रसाद श्रीवास्तव<br />4. मिथिला तत्व विमर्श, लेखक परमेश्वर झा, तरौनी 1949<br />5. बिहार की नदियां- हवलदार त्रिपाठी, पटना- 1977<br />6. बाराह पुराण, राघव शास्त्री (संपादक) बम्बई- 1932<br />7. मंत्रदृष्टा ऋष्य शृंग, हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ नोयडा, उ.प्र. 2001<br /><br />निजी अध्ययन, सर्वेक्षण, स्थानीय लोगों से विमर्श एवं कई अन्य साक्ष्यों को सामने रखकर तैयार किया गया आलेख।yehsilsilahttp://www.blogger.com/profile/13383588622758341061noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6745011438502140962.post-28282795454942148522009-02-10T03:57:00.001-08:002009-05-27T08:22:48.876-07:00मामूली आदमी का घोषणा पत्र<a href="http://3.bp.blogspot.com/__q8CUXLTEUY/SZFr-poBzBI/AAAAAAAAAbU/53OXFHSYJ0E/s1600-h/art7.bmp"><img style="MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 113px; FLOAT: right; HEIGHT: 250px; CURSOR: hand" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5301136960461589522" border="0" alt="" src="http://3.bp.blogspot.com/__q8CUXLTEUY/SZFr-poBzBI/AAAAAAAAAbU/53OXFHSYJ0E/s320/art7.bmp" /></a><br /><br /><br /><span style="font-size:130%;"><span style="color:#003333;">मामूली आदमी हूँ<br />असमय मरुँगा<br />तंग गलियों में<br />संक्रमण से<br />सड़क पार करते हुए<br />वाहन से कुचल कर<br />या पुलिस लाकअप में<br /><span style="font-size:+0;"></span><br />माफ करना मुझे<br />अदा नहीं कर सकूँगा<br />मैं अपना पोस्टमार्टम खर्च !<br /><br /></span><span style="color:#660000;">- <a href="http://janshabd.blogspot.com/">अरविन्द श्रीवास्तव</a></span></span>yehsilsilahttp://www.blogger.com/profile/13383588622758341061noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6745011438502140962.post-61843480709539079572008-07-31T18:54:00.000-07:002008-07-31T21:44:37.255-07:00मधेपुरा पहली नज़र में<span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span class=""><p align="left"><span style="color:#000000;"><span style="font-size:180%;"><span style="color:#006600;">जानिए मधेपुरा को</span><br /></p></span></span><span style="color:#ff6600;"><span class=""></span></span><p align="left"><span style="font-size:180%;"><span style="color:#ff6600;">मधेपुरा के ऐतिहासिक स्थलों को</span> </span></p><p align="left"><span style="font-size:180%;"></span> </p><p align="left"><span style="font-size:180%;"><span style="color:#009900;">मिलिए मधेपुरा के चर्चित व्यक्तित्व से</span> </span></p><p align="left"><span style="font-size:180%;"></span> </p><p align="left"><span style="color:#cc6600;"><span style="font-size:180%;">और भी बहुत कुछ </span></span></p><p align="left"><span style="font-size:180%;color:#cc6600;"></span> </p><p align="left"><span style="font-size:180%;"><span style="color:#cc0000;">मधेपुरा के बारे में</span> <span style="color:#3333ff;">---</span> <span style="color:#ff0000;">सभी कुछ </span></span></span></span></span></p><p align="left"></span></span> </p><p align="left"></span></span> </p><p align="left"></span></span> </p><p align="left"></span></span> </p><p align="left"></span></span> </p><p align="left"></span></span> </p><p align="left"></span></span> </p><p align="left"></span></span> </p><p align="left"></span></span> </p><p align="left"></span></span></span></span><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span class=""></span></span></span></span></span></span></span> </p></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span></span><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span style="color:#000000;"><span style="color:#006600;"><span class=""></span></span></span></span></span></span></span>yehsilsilahttp://www.blogger.com/profile/13383588622758341061noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6745011438502140962.post-91182887432015499042008-07-31T04:38:00.000-07:002008-08-31T21:58:21.962-07:00<span style="color:#00cccc;"><strong><span style="font-size:130%;">कोसी नदी</span></strong></span><br /><span style="color:#990000;"><span style="font-size:130%;"><span class=""></span></span></span><br /><span style="color:#990000;"><span style="font-size:130%;"><span class="">- <span style="color:#000099;">संतोष सिन्हा </span></span></span></span><span style="color:#000099;"></span><br /><em><span style="color:#990000;"><span class=""></span></span></em><br /><em><span style="color:#990000;"><span class="">कोसी</span> नदी </span><span style="color:#990000;"><span class="">बहुत</span> पुरानी है</span></em><br /><span style="color:#990000;"><span class=""></span></span><span style="color:#990000;"><em>लेकिन इसका नया पानी है </em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>इसके ही तेज से है </em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>जनपद हमारा जगमग </em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>और इसके बल से </em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>खेती है किसानी है </em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>कोसी नदी ---</em></span><br /><span style="color:#990000;"><em></em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>बरसात के मौसम में </em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>बन जाती काली कोसी</em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>करती विनाश लीला </em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>आजाता सुनामी है </em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>कोसी नदी---</em></span><br /><span style="color:#990000;"><em></em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>उत्तर से उत्तरती है </em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>पर्वत के शिखर से </em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>पत्थर से पिघलती </em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>उग्र धारा हिमानी है </em></span><br /><span style="color:#990000;"><em></em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>कोसी नदी बहुत पुरानी है </em></span><br /><span style="color:#990000;"><em>लेकिन नया इसका पानी है । </em></span><br /><span style="color:#990000;"><em></em></span><br /><span style="color:#990000;"><span class=""><span class=""><em>- लक्ष्मीपुर मोहल्ला , <strong>मधेपुरा</strong> ,</em> <em>बिहार </em></span></span></span><br /> <span style="color:#33ff33;"> </span><span style="color:#990000;">मोबाइल</span> <span style="color:#006600;">-09334984895</span>yehsilsilahttp://www.blogger.com/profile/13383588622758341061noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6745011438502140962.post-58503015830701740102008-07-31T03:55:00.000-07:002008-07-31T04:37:30.216-07:00साहित्य मधेपुरा में<span style="font-size:130%;"><strong><span style="color:#993399;">सुबह का इंतजार कर</span></strong> </span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">- भूपेंद्र नारायण " मधेपुरी"</span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br />कोसी तट पर<br />मछेरे सूरज ने<br />किरणों के जाल को समेट कर<br />अपने घर की राह ली<br />सुबह का इन्तिज़ार कर<br /><br />उसी तट पर बच्चे जब<br />बालू के घरोंदे बनाकर<br />खेलने आयेंगे<br />अपनी गायों-बच्च्रों को साथ लेकर<br />चराने निकलेगा जब कोई कन्हैया<br /><br />बंद परे जल पर<br />पानी के इंतजार में<br />खरी हो कर परोसिनो की कुछ<br />रहस्यमय बातें फुसफुसाकर<br />बतियाने के लिए उत्सुक होंगी<br />दो परोसिने ।<br /><br />मुंडेर पर मुर्गे देंगे बांग कौए अपनी उपस्थिति को<br />कांव - कांव कर दर्ज कराएँगे<br />और मन्दिर में बजेंगे शंख<br />तभी कोई बच्चा / जवान फुल तोरने घुस आयेगा<br />परिसर में दबे पाँव ।<br />लिंक एक्सप्रेस सिटी बजाती स्टेशन पर रुकेगी<br />रिक्शों की आवाजाही से<br />सुबह टहलने वालों की गतिविधि से टूटेगा सन्नाटा सड़क का ।<br /><br /> -वृन्दावन ,आजाद नगर ,<br /> मधेपुरा ,बिहार<br /><br /><br /><br /><span style="font-size:130%;"></span>yehsilsilahttp://www.blogger.com/profile/13383588622758341061noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6745011438502140962.post-43852924191199985172008-07-31T00:51:00.000-07:002008-08-19T18:53:50.012-07:00कोसी क्षेत्र<span style="color:#6600cc;"><span class=""><span style="font-size:130%;color:#ff0000;">कोसी</span> क्षेत्र का संक्षिप्त इतिहास</span><br /><span class=""></span><br />रामायण काल में ॠष्य शृंग आश्रम, महाभारत काल में चम्पारण्य (चम्पा राजा का अरण्य भाग) तथा बुद्ध काल में अंग महाजनपद का उत्तरी भाग अंगुत्तराप के नाम से चर्चित क्षेत्र वर्तमान काल में कोसी अंचल है। कोसी इस अंचल की सांस्कृतिक पह्चान है। यहां के लोग जुझारु है तथा अन्याय का प्रतिरोध करते आये है। भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में ब्रितिश सरकार द्वारा किये गये दमन के फ़लस्वरुप सम्पूर्ण बिहार में 134 व्यक्ति शहीद हो गये – जिनमें नौ शहीद कोसी अंचल के है –<br /><br />1 शहीद बच्चा मंडल – पिता – जागो मंडल, डपरखा, जिला – सुपौल<br />2 शहीद चुल्हाई यादव, पिता – फ़ूलचन्द यादव, मनहरा सुखासन, जिला – मधेपुरा<br />3 शहीद धीरो राय, पिता – गुदड़ राय, एकाड़, जिला – सहरसा<br />4 शहीद बाजा साह, पिता – बहारी साह, किसुनगंज, जिला – मधेपुरा<br />5 शहीद पुलकित कामत, पिता – ठीठर कामत, बनगांव, जिला – सहरसा<br />6 शहीद हरिकान्त झा, पिता – जनार्दन झा, बनगांव, जिला- सहरसा<br />7 शहीद कालेश्वर मंडल, पिता – रामी मंडल, गढिया बलहा ( सहरसा )<br />8 शहीद भोला ठाकुर, पिता – बबुआ ठाकुर, चेनपुर (सहरसा )<br />9 शहीद केदारनाथ तिवारी, पिता –विश्वनाथ तेवारी, नरियार (सहरसा )<br /><br /><span style="font-size:130%;">- कलम, आज उनकी जय बोल !</span></span>yehsilsilahttp://www.blogger.com/profile/13383588622758341061noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6745011438502140962.post-56679306394230949542008-07-29T19:48:00.000-07:002009-05-27T08:19:58.711-07:00<span style="color:#6600cc;"><a href="http://janshabd.blogspot.com/"><span style="font-size:130%;">अरविन्द श्रीवास्तव</span></a></span><span style="font-size:130%;"> प्रस्तुत करते हैं -<br /><span style="color:#3333ff;"></span><br /><span style="color:#660000;">मधेपुरा का संक्षिप्त इतिहास और </span><br /><span style="color:#660000;"></span><br /><span style="color:#3333ff;"><span style="color:#cc0000;">साहित्यिक गतिविधिओं का लेखा जोखा</span> -</span></span>yehsilsilahttp://www.blogger.com/profile/13383588622758341061noreply@blogger.com